|दिए की रौशनी|
दिए की रौशनी
| वो परिंदा |
वो परिंदा...!!! एक खुला आसमान और बिना बंधन का परिंदा कोई डर नहीं फिर भी रहता है सहमा हुआ सा पंख...
|कविता|
कविता
दिए की रौशनी
वो परिंदा...!!! एक खुला आसमान और बिना बंधन का परिंदा कोई डर नहीं फिर भी रहता है सहमा हुआ सा पंख...
कविता