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वो परिंदा…!!!

एक खुला आसमान और बिना बंधन का परिंदा
कोई डर नहीं फिर भी रहता है सहमा हुआ सा
पंख अपने बांध रखे थे हमेशा एक दायरे में
थोड़ा सा उड़कर लौट आता वो अपने पिंजरे में
कभी खुद को उन्मुक्त का एहसास ना होने दिया
जो दूर था दूर ही रखा कभी पास ना आने दिया
अचानक उस आसमान में तूफान सा आ गया
सारे रास्ते थे खुले पर परिंदा कहीं गुम हो गया
पंख कमज़ोर हुए मगर अब उसे उड़ना भी था
अपने बनाए दायरों से अब उसे लड़ना भी था
राह मुश्किल हो गई आसमान भी उसका नहीं
ढूंढता फिरता है खुद को जहां कोई अपना नहीं
पंखों को बांध कर खुद में ही ठान लिया है उसने
उड़ना नहीं अब चलना है ये मान लिया है उसने
कोई परवाह नहीं कि अब मुश्किलें ज्यादा हैं
जो उसका है उसे सदा पास रखने का इरादा है
बंधनमुक्त होकर भी बंधन में ही बंधा रहा वो
एक ख़्वाब पूरा हो जाए हां यही सोचता रहा वो
अब मुश्किलें हैं, दायरे हैं और कुछ सवाल भी हैं
कुछ अनसुलझे हुए से जिंदगी के बवाल भी हैं
आसमान के एक तारे संग उसका गहरा नाता है
वो छोड़ ना पायेगा उसे ये उसका मन जानता है
दूर से भी उस अनमोल रिश्ते को निभा सकता है वो
ज़मी पर होकर भी आसमां को अपने पास रख सकता है वो
मगर टूट जाता है वो परिंदा जब बार बार उड़ता है गिरता है
घायल हिम्मत के साथ मुस्कान लिए फिर एक नई उड़ान भरता है।