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( ये मेरी मौलिक रचना नहीं है। क्लास 10 के english book में ये एक छोटी सी बच्ची भोली की लंबी कहानी है जिसको मैंने अपने शब्दों में छोटा करके सार बताने की कोशिश की है। थोड़ा बहुत हेर फेर शब्दों और चरित्र का है।)

शीर्षक : भोली

“दादी मां आज भूत की कहानी सुनाओ”।
“नहीं , नहीं दादी मां आप तो आज एक राजा की कहानी सुनाओ।”
“दादी मां आप परियों की कहानी सुनाओ।”

बच्चों के शोर के बीच बुद्धि दादी मां हंसते हुए बोलीं कि आज मैं तुमको भोली की कहानी सुनाऊंगी। तो सभी बच्चे एक साथ बोल पड़े “भोली की कहानी “!
हां बेटा।

एक गांव में एक आदमी की 2 बेटियां और 2 बेटे थे। बाकी सब तो ठीक लेकिन उनमें सबसे छोटी भोली बचपन में बीमार होने की वजह से काफी कमज़ोर थी। माता निकलने के चलते चेहरे पर दाग भी पड़ गए थे। और बिचारी हकलाती भी थी। पूरा गांव उसका मज़ाक बनाता।
एक दिन गांव में एक स्कूल खुला और भोली के पिता उसका दाखिला वहा करवा आए।
जब उसकी शिक्षिका ने उससे उसका नाम पूछा तो वो हकलाते हुए बोली “भो… भो…. भो…. भोली” और रोने लगी।
शिक्षिका ने प्यार से सिर पर हाथ फेरा और समझाया। उसको एक किताब दी पढ़ने को। धीरे – धीरे भोली में सुधार आने लगा।

एक दिन उसके पिता ने भोली की शादी तय कर दी एक ऐसे आदमी से जो उम्र में भोली के बाप जितना था। भोली ने कुछ नहीं कहा और शादी के लिए मान गई।
शादी की रात मंडप में जैसे ही उस आदमी ने भोली का चेहरा देखा तो वो गुस्सा हो गया और शादी करने के लिए 5000 रुपयों की शर्त रखी। भोली के पिता ने अपनी पगड़ी उस आदमी के पांव में रखी और भोली से शादी करने को कहा।
तब भोली ने पगड़ी उठाकर अपने पिता को पहनाया और बोली
” पिताजी आपकी खातिर मैंने इस शादी के लिए हां कही थी लेकिन इस लालची आदमी से शादी करके जीवन भर पछताने से अच्छा है मैं आज अपना निर्णय खुद लूं।
भोली ने उस आदमी को बेइज्जत करके मंडप से भगा दिया।
भोली के पिता ने उदास होकर पूछा “अब तू क्या करेगी भोली? ऐसे कैसे जीवन काटेगी?”
भोली ने मुस्कुराते हुए बोली
” पिता जी आप चिंता ना करें। मैं जीवन भर आपके साथ रहूंगी और जिस स्कूल से मैने पढ़ाई की है अपना पूरा जीवन वहीं बच्चों को पढ़ाने में लगा दूंगी।”

और इस तरह भोली के आत्मविश्वास की जीत हुई।
सभी बच्चे ताली बजाने लगे और अचानक सबकी मम्मियों ने आवाज़ लगाई
“अरे आ जाओ बच्चों कि दिन भर कहानी ही सुनते रहोगे।”

सभी बच्चों ने दादी को बाय बोला और फिर कल आयेंगे बोलकर अपने घर चले गए।

दादी मां और उनकी पोती सिया मुस्कुराते हुए कमरे में गए जहां सिया की मां गरमागरम खाने पर उनका इंतज़ार कर रहीं थी।