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लेखक होना इतना आसान भी नहीं होता 

लेखक होना इतना आसान नही होता

“लेखक” ये जितना छोटा शब्द है उसका उतना ही गहरा और व्यापक अर्थ है। नहीं, नहीं मैं अपने बारे में कुछ नहीं कहने वाली क्योंकि अब तक मैने खुद को लेखक के रूप में पूर्णतः स्वीकार नहीं किया है। लिखती हूं और हर विधा में लिखने की कोशिश करती हूं लेकिन जब इस क्षेत्र में औरों की लेखनी पढ़ती हूं तो खुद को बहुत पीछे पाती हूं। अभी तो सीख रही हूं और बहुत दूर तक अभी सीखना ही है मुझे। लेकिन इस रास्ते पर चलते हुए जिन्हें पढ़ रही हूं और जिनको समझने की कोशिश कर रही हूं उसमे ये एक बात समझ में आई कि लेखक होना आसान नहीं होता।

वैसे आसान तो कोई काम नहीं होता लेकिन एक लेखक भावनाओं का अंबार अपने हृदय में संजोए रखता है। एक साथ कई भावनाएं उसके ज़हन में चल रही होती हैं और वो उन्हें खुद में आत्मसात करके , शब्दों के मोती पिरोकर कभी कविता तो कभी कहानी का रूप देता है।

जब तक लेखक अपने मन मुताबिक लिखता है, तब तक वो फिर भी आज़ाद रहता है अपने शब्दों को अपने हिसाब से पिरोने में। लेकिन मुश्किल और असली इम्तिहान की घड़ी तब आती है जब उसे दूसरों के भावनाओं के हिसाब से लिखना पड़े।
कल्पना कीजिए एक प्रोफेशनल लेखक जो कभी किसी कारण वश परेशान है और उसको एक प्रेम गीत लिखने का दो। वो लिख तो देता है लेकिन कितना मुश्किल होता होगा अपने अंतर्मन के भाव दबाकर खुशी को लिखना। वैसे ही खुश होते हुए किसी दर्द को बयां करना। और इससे भी बड़ी मुश्किल कि उस लिखे हुए को पढ़ने वाला उसे अपने जीवन से जोड़कर देख पाता है तभी वो रचना सफल मानी जाएगी।

कहते हैं कि लेखक के लिखे हुए विचार बिलकुल वैसे के वैसे ही अगर उसके पाठक तक पहुंचता है तभी उस रचना के अर्थ की सार्थकता सिद्ध होती है। यदि लेखक के लिखी हर रचना अपने आप में अलग है और हर बार अपनी रचनाओं के द्वारा वो लेखक एक नए रूप में सामने आता है और पाठक के लिए ये अनुमान लगाना मुश्किल हो जाए कि आख़िर उस लेखक की विशिष्टता किसमे है तब वो उस लेखक के लेखन क्षेत्र में उसकी कलम की पराकाष्ठा होती है।

ख़ैर मैं तो अभी इस रास्ते की धूल मात्र हूं , और अभी एक लंबा सफ़र तय करना है वो भी बिना बिखरे हुए । लेकिन पूरी कोशिश रहेगी कि कम से कम अपनी कलम, अपने विचार और अपनी भावनाओं को शब्दों के सुंदर मोती में गढ़कर एक सार्थक रचना का निर्माण कर पाऊं।

दिल की कलम से….. ✍️ लेखक होना इतना आसान नही होता "लेखक" ये जितना छोटा शब्द है उसका उतना ही गहरा और व्यापक अर्थ है। नहीं, नहीं मैं अपने बारे में कुछ नहीं कहने वाली क्योंकि अब तक मैने खुद को लेखक के रूप में पूर्णतः स्वीकार नहीं किया है। लिखती हूं और हर विधा में लिखने की कोशिश करती हूं लेकिन जब इस क्षेत्र में औरों की लेखनी पढ़ती हूं तो खुद को बहुत पीछे पाती हूं। अभी तो सीख रही हूं और बहुत दूर तक अभी सीखना ही है मुझे। लेकिन इस रास्ते पर चलते हुए जिन्हें पढ़ रही हूं और जिनको समझने की कोशिश कर रही हूं उसमे ये एक बात समझ में आई कि लेखक होना आसान नहीं होता। वैसे आसान तो कोई काम नहीं होता लेकिन एक लेखक भावनाओं का अंबार अपने हृदय में संजोए रखता है। एक साथ कई भावनाएं उसके ज़हन में चल रही होती हैं और वो उन्हें खुद में आत्मसात करके , शब्दों के मोती पिरोकर कभी कविता तो कभी कहानी का रूप देता है। जब तक लेखक अपने मन मुताबिक लिखता है, तब तक वो फिर भी आज़ाद रहता है अपने शब्दों को अपने हिसाब से पिरोने में। लेकिन मुश्किल और असली इम्तिहान की घड़ी तब आती है जब उसे दूसरों के भावनाओं के हिसाब से लिखना पड़े। कल्पना कीजिए एक प्रोफेशनल लेखक जो कभी किसी कारण वश परेशान है और उसको एक प्रेम गीत लिखने का दो। वो लिख तो देता है लेकिन कितना मुश्किल होता होगा अपने अंतर्मन के भाव दबाकर खुशी को लिखना। वैसे ही खुश होते हुए किसी दर्द को बयां करना। और इससे भी बड़ी मुश्किल कि उस लिखे हुए को पढ़ने वाला उसे अपने जीवन से जोड़कर देख पाता है तभी वो रचना सफल मानी जाएगी। कहते हैं कि लेखक के लिखे हुए विचार बिलकुल वैसे के वैसे ही अगर उसके पाठक तक पहुंचता है तभी उस रचना के अर्थ की सार्थकता सिद्ध होती है। यदि लेखक के लिखी हर रचना अपने आप में अलग है और हर बार अपनी रचनाओं के द्वारा वो लेखक एक नए रूप में सामने आता है और पाठक के लिए ये अनुमान लगाना मुश्किल हो जाए कि आख़िर उस लेखक की विशिष्टता किसमे है तब वो उस लेखक के लेखन क्षेत्र में उसकी कलम की पराकाष्ठा होती है। ख़ैर मैं तो अभी इस रास्ते की धूल मात्र हूं , और अभी एक लंबा सफ़र तय करना है वो भी बिना बिखरे हुए । लेकिन पूरी कोशिश रहेगी कि कम से कम अपनी कलम, अपने विचार और अपनी भावनाओं को शब्दों के सुंदर मोती में गढ़कर एक सार्थक रचना का निर्माण कर पाऊं। दिल की कलम से..... ✍️ अनिता पाठक