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गहरे ज़ख्म

कुछ गहरे ज़ख्म
कभी नहीं भरते
तू गले से लगा ले तो शायद
थोड़ा सा सुकून मिल जाए

नहीं चाहिए मुझको कभी
ज़माने भर की खुशियां तुमसे
एक हाथ पकड़कर थाम लो
हम गिरते हुए भी संभल जाएं

मोहब्बत की आजमाइश
की जरूरत ही क्यों पड़नी
इश्क़ तो वो जो आंखों से होकर
सीधे दिल तक पहुंच जाए

जिंदगी चलती ही जाती है
अपनी ही लय में उम्र निकल जाती है
कभी फुर्सत में बैठकर कुछ वक्त गुजारें
सारे गिले शिकवे शायद दूर हो जाएं

दायरों में बंधी होती है
इंसान की सारी ख्वाहिशें
सपनों को ही सिर्फ़ है इजाज़त
जहां मर्ज़ी वहां जाएं

कभी लड़ना कभी झगड़ना
पर अंततः एक दूसरे को समझना
शब्द ही तो हैं सारे हृदय के
कब तक हृदय में छुपाए जाएं

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